
दिल्ली हो या देश का कोई और कोना, अरविंद केजरीवाल दिल्ली की शिक्षा नीति की तारीफ़ करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते हैं.
अरविंद केजरीवाल ने वाकई दिल्ली में शिक्षा की सूरत बदल दी है
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 9वीं और 11वीं में फेल होने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है

चाहे दिल्ली हो या देश का कोई और कोना, अरविंद केजरीवाल दिल्ली की शिक्षा नीति की तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
2022 में गुजरात चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के एक सरकारी स्कूल का दौरा किया। इस दौरान पीएम मोदी क्लासरूम में बच्चों के बीच बैठे नजर आए।
आम आदमी पार्टी ने इसे दिल्ली की ‘शिक्षा क्रांति’ का असर बताया और इसका श्रेय अरविंद केजरीवाल को दिया। दिल्ली के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया, “वे हमें जेल भेजेंगे। हम उन्हें स्कूल भेजेंगे।”
हालांकि, विपक्षी दल कांग्रेस और बीजेपी इसे शिक्षा के नाम पर अरविंद केजरीवाल का ‘फ्लॉप शो’ बताते हैं।
3 जनवरी को पीएम मोदी ने दिल्ली में एक रैली में कहा, ”पिछले दस सालों से दिल्ली में जो लोग राज्य सरकार में हैं, उन्होंने यहां स्कूली शिक्षा व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया है। दिल्ली में ऐसी सरकार है, जिसे दिल्ली के बच्चों के भविष्य की कोई चिंता नहीं है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार द्वारा शिक्षा के लिए दिए गए पैसे का आधा भी वे खर्च नहीं कर पाए हैं।” रविवार को कांग्रेस नेता अजय माकन ने दिल्ली में शिक्षा के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। अजय माकन ने सवाल उठाया, “अगर आपका (अरविंद केजरीवाल) शिक्षा का मॉडल इतना अच्छा है तो बच्चे सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में क्यों जा रहे हैं?

केजरीवाल की शिक्षा नीति
अरविंद केजरीवाल ने तीन बार (2013, 2015 और 2020) दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। तीनों कार्यकालों को मिला दें तो केजरीवाल करीब दस साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से सत्ता में आए और धीरे-धीरे उन्होंने अपना एजेंडा पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर केंद्रित किया।
2015 में आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आए तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाएंगे। तब से लेकर अब तक दिल्ली सरकार बजट का करीब 20-25 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती आ रही है। यह देश के सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है।
हालांकि, सकल राज्य घरेलू उत्पाद के अनुपात में शिक्षा पर खर्च के मामले में दिल्ली अन्य राज्यों से पीछे है।
शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल शिक्षा पर खर्च में दिल्ली सबसे पीछे है। दिल्ली में पिछले साल के मुकाबले शिक्षा पर 1.5 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। 2021-22 में दिल्ली ने अपने बजट में 20-25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। जीएसडीपी का 1.63 फीसदी खर्च किया गया है। जीएसडीपी के मुकाबले शिक्षा पर खर्च के मामले में दिल्ली सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में सबसे निचले पायदान पर है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा पर कुल खर्च की बात करें तो भारत ने 2021-22 में अपने जीडीपी का 4.12 फीसदी खर्च किया।
फिलहाल आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं और वह खुद शिक्षा विभाग भी संभालती हैं।
दिल्ली सरकार का दावा है कि स्मार्ट क्लास, स्विमिंग पूल, लाइब्रेरी और आधुनिक लैब जैसी सुविधाओं ने सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के बराबर खड़ा कर दिया है। लेकिन बच्चों की कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
साल 2022-23 में दिल्ली के एक हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में करीब 17.85 लाख छात्र पढ़ रहे थे। इन छात्रों में से 6.67 लाख छात्र (करीब 33%) अप्रैल 2023 से फरवरी 2024 के बीच लगातार सात दिन या 30 में से 20 दिन अनुपस्थित रहे।
स्कूल छोड़ने वालों की संख्या को देखते हुए दिल्ली सरकार ने जून 2024 में एक फैसला लिया, जिसकी कई लोगों ने आलोचना की।
दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने सरकारी स्कूलों से कहा कि वे नौवीं कक्षा में दो बार फेल होने वाले छात्रों को शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए एनआईओएस में दाखिला दें। एनआईओएस का मतलब है राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान।
सरकार के इस फैसले के पीछे तर्क यह था कि फेल होकर स्कूल छोड़ने वाले छात्रों के लिए अनौपचारिक शिक्षा के दरवाजे खुलेंगे। हालांकि आलोचकों का कहना है कि दिल्ली सरकार दसवीं कक्षा का रिजल्ट सुधारने के लिए कमजोर छात्रों को नौवीं कक्षा में रोक रही है।
विशेषज्ञों की राय
प्रोफेसर जेएस राजपूत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पूर्व अध्यक्ष हैं।
प्रोफेसर जेएस राजपूत कहते हैं कि दिल्ली में ऐसा कुछ खास नहीं हुआ है, जिसकी वजह से इसे शिक्षा के मामले में दूसरे राज्यों से बेहतर कहा जा सके। दिल्ली की शिक्षा नीति पर जेएस राजपूत कहते हैं, “जब अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि वे स्कूलों पर ध्यान देंगे, तो मुझे उम्मीद की किरण दिखी। कहा गया था कि 500 नए स्कूल बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिर्फ़ कुछ ही स्कूलों में कमरे और लैब हैं। हज़ारों बच्चों को 9वीं क्लास में ही रोक दिया जाता है और फिर ये बच्चे ओपन स्कूल से पढ़ाई करने को मजबूर होते हैं। जब तक ऐसे ट्रेंड चलते रहेंगे, शिक्षा में सुधार नहीं हो सकता
अरविंद केजरीवाल ने वाकई दिल्ली में शिक्षा की सूरत बदल दी है